Paatal Lok Review: नीरज काबी और जयदीप अहलावत स्टारर 'पाताल लोक' में एक बार घुसे, तो निकल नहीं पाएंगे



नई दिल्ली, (रजत सिंह)। Paatal Lok Review: वेब सीरीज़ के हिसाब सेअभी तक यह साल उतना ख़ास नहीं रहा है। कोई भी ऐसी वेब सीरीज़ नहीं आई, जिसने हिंदी दर्शकों के बीच 'सेक्रेड गेम्स' या 'मिर्ज़ापुर' जैसा ट्रेंड सेट किया हो। लेकिन अब शायद दर्शकों को कुछ ऐसा ही मिल गया है। जबरदस्त क्राइम के साथ बेजोड़ थ्रिलर है, वो भी रियलिस्टिक थाली पर परोस दिया गया है। सब कुछ ऐसा है, जो आपके आस-पास घट रहा है। 

अमेज़न प्राइम वीडियो की वेब सीरीज़ 'पाताल लोक' ट्रेलर के बाद से ही अपना बज़ बनाने लगी थी। सुदीप शर्मा के निर्देशन के साथ अनुष्का शर्मा का प्रोडक्शन है। वहीं, नीरज काबी, जयदीप अहलावत, अभिषेक बनर्जी और गुल पनाग जैसे एक्टर्स की मेहनत है।  आइए जानते हैं, हमें अमेज़न प्राइम वीडियो की यह वेब सीरीज़ कैसी लगी...

कहानी 

एक पुलिस वाले की है। नाम है हाथीराम चौधरी (जयदीप अहलावत)। दिल्ली के आउटर जमुनापार थाने में पोस्टिंग है। हाथीराम की वाट्सअप यूनिवर्सिटी के मुताबिक,  दुनिया में तीन लोक हैं। स्वर्ग लोक- जहां बड़े लोग रहते हैं। धरती लोक- जहां वह रहता है। पाताल लोक- जहां उसकी पोस्टिंग है। हाथीराम के इलाके में एक ब्रिज है। दिल्ली पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन में इस ब्रिज पर चार क्रिमनल गिरफ्तार होते हैं। हथौड़ा त्यागी, टोप सिंह, चीनी और कबीर एम। इन पर मीडिया टाईकून संजीव मेहरा (नीरज काबी) की हत्या की साजिश का आरोप है। संजीव मेहरा सफेद कल्फ में काले कोट वाले एक फेमस टीवी जर्नलिस्ट हैं। एक समय का हीरो और आज टीआरपी में जीरो। यह केस हाथीराम को सौंपा जाता है। केस में कई पहलू हैं, जिसे हाथीराम को सुलझाना है। हाथीराम को ना सिर्फ पुलिस डिपार्टमेंट को बताना है, बल्कि अपने परिवार को भी बतना है कि वह हीरो है। क्या वह केस सुलझा पाता है? यह जानने के लिए आपको वेब सीरीज़ देखनी होगी। 

क्या है ख़ास

वेब सीरीज़ को ख़ास बनाने वाले विषयों की लिस्ट लंबी है, इसलिए मामले को क्रमबद्ध तरीके से समझना चाहिए। 

1. निर्देशन के मामले में सुदीप शर्मा ने अपने आपको साबित किया है। सुदीप इससे पहले 'एनएच 10' और 'उड़ता पंजाब' जैसी फ़िल्में लिख चुके हैं। वेब सीरीज़ को उन्होंने बिलकुल सरल बनाए रखा है। एपिसोड आगे बढ़ते-बढ़ते यह इस कदर आपको अपने कब्जे में लेता है कि आप लगातार 'पाताल लोक' में घुसते चले जाते हैं। लोकल भाषा, लोकेशन और रंग सब पर सुदीप ने बराबर पकड़ बनाई है। पंजाब के सीन में आपको पंजाबी सुनाई देगी। नई दिल्ली की हाई सोसाइटी में अंग्रेजी, तो उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में बुंदेलखंडी। आपको कभी नहीं लगेगा कि मामला भटक रहा है।

2. निर्देशन को एक्टिंग का जबरदस्त साथ मिला है। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के पहले पार्ट में शाहिद का किरदार निभाने वाले जयदीप अहलावत बिलकुल रंगत में नज़र आए हैं। चेहरे पर भाव पानी की तरह उतरे हैं। एक परेशान पुलिस वाला, जो घर समाज और ऑफ़िस तीनों जगह लड़ रहा है। उस पुलिस वाले की खुशी, गम और चिंता को जयदीप ने अपने चेहरे पर शिद्दत से उतारा है। जयदीप के साथी पुलिस वाले इश्वाक सिंह भी एक्टिंग के मामले में पूरी तरह से सहयोग देते हैं। 


नीरज काबी एक प्रोफेशनल पत्रकार की भूमिका में खू़ब नज़र आते हैं। नेटफ्लिक्स की 'ताजमहल' में नुक्ते वाली उर्दू से संजीव मेहरा की फर्टाटेदार अंग्रेजी तक नीरज हर जगह परफेक्ट लगते हैं। वहीं, हथौड़ा त्यागी का किरदार निभाने वाले अभिषेक बनर्जी ने मुंह से कुछ ख़ास नहीं बोला है। लेकिन उनके आंखें सब कुछ बंया करती हैं। गुल पनाग एक घरेलू महिला का किरदार को एकदम सरलता से निभा देती हैं। 

3. कहानी इस वेब सीरीज़ की जान है। वह आज के भारत में हो रही घटानाओं को समेटने की सफ़ल कोशिश करती है। सबसे ख़ास बात है कि थ्रिलर और सस्पेंस आखिरी छड़ तक बरकरार रहता है। सीरीज हर एपिसोड में एक ट्विस्ट लेती है, लेकिन आप कभी प्रेडिक्टिबल नहीं हो सकते। कई ऐसे डायलॉग हैं, जिसने लोगों को मीम मेटरियल भी मिलेगा। जैसे- ऐसा पुराणों में लिखा है, लेकिन मैंने वाट्सअप पर पढ़ा है। सुदीप शर्मा, गुंजीत चोपड़ा, सागर हवेली और हार्दिक मेहता ने मिलकर अच्छा काम किया है। 


4. सीरीज़ का तकनीक पक्ष मजबूत है। ज्यादातर शूटिंग वास्तविक लोकशन पर की गई है। अगर नहीं भी है, तो आपको अहसास नहीं होता है। ड्रोन से लेकर क्लोज़ शॉट्स तक कैमरे का हर एंगल आपको देखने को मिल जाता है। कुल मिलकार तकनीक इसे देखने के हिसाब से सरल बनाती है। ख़ासकर हिंसा वाले सीन का फ़िल्मांकन तारीफ लायक है। 

कहां रह गई कमी

ऐसा नहीं है कि वेब सीरीज़ बिलकुल साफ सुथरी और अव्वल दर्जे की है, जिसमें कमियां नहीं है। पाताल लोक में भी कुछ कमियां हैं।

1. वेब सीरीज़ का अंत हल्का-सा निराश करता है। इसे और बेहतरीन तरीके से गढ़ा जा सकता है। शायद लेखक को इस बारे में कुछ और सोचना चाहिए था।

2. हिंसा और अपशब्द काफी अधिक हैं। कहने को तो सेक्रेड गेम्स और मिर्ज़ापुर में भी इनका इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इन मामलों में अति से बचा जा सकता था।

3. बीच के कुछ एपिसोड हल्के-से स्लो हैं। जहां कहानी रुकती सी नज़र आती है। हालांकि, यह तब होता है, जब तक आपको इसका परवान चढ़ चुका होता है। हो सकता है कि आपको इसका अहसास भी ना हो।

4. पाताल लोक राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील है। ऐसे मामलों पर में अंतर धागे भर का होता है। हो सकता है कुछ लोग कुछ सीन पर एतराज़ करें।

अंत में

वेब सीरीज़ से कुछ मसलों को निकला दें, तो यह आपको पाताल लोक से स्वर्ग लोक का सफ़र करा देती है। सीरीज़ देखने के समय में रोमांच अपनी चरम सीमा पर होता है। लंबे समय के बाद हिंदी वेब सीरीज़ में क्राइम के जॉनर में कुछ बेहतरीन आया है। शायद अमेज़न प्राइम वीडियो के लिए अब मिर्जापुर के साथ पाताल लोक का दूसरा सीज़न भी यक्ष प्रश्न बनने वाला है। लोग इसकी तुलना नेटफ्लिक्स की 'सेक्रेड गेम्स' से करने वाले हैं। 


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